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*👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*


                *!! पुण्य कर्म का उचित फल !!*

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एक गांव में एक बहुत गरीब सेठ रहता था जो कि किसी जमाने बहुत बड़ा धनवान था। जब सेठ धनी था उस समय सेठ ने बहुत पुण्य किए, गौशाला बनवाई, गरीबों को खाना खिलाया, अनाथ आश्रम बनवाए और भी बहुत से पुण्य किए थे लेकिन जैसे जैसे समय गुजरा सेठ निर्धन हो गया।


एक समय ऐसा आया कि राजा ने ऐलान कर दिया कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई पुण्य किए हैं तो वह अपने पुण्य बताएं और अपने पुण्य का जो भी उचित फल है ले जाएं।


यह बात जब सेठानी ने सुनी, तो सेठानी, सेठ को कहती है कि हमने तो बहुत पुण्य किए हैं तुम राजा के पास जाओ और अपने पुण्य बताकर उनका जो भी फल मिले ले आओ। सेठ इस बात के लिए सहमत हो गया और दुसरे दिन राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गया। जब सेठ महल जाने लगा तो सेठानी ने सेठ के लिए चार रोटी बनाकर बांध दी कि रास्ते में जब भूख लगे तो रोटी खा लेना। सेठ राजा के महल को रवाना हो गया।


गर्मी का समय, दोपहर हो गई, सेठ ने सोचा सामने पानी की कुंड भी है वृक्ष की छाया भी है क्यों ना बैठकर थोड़ा आराम किया जाए व रोटी भी खा लूंगा। सेठ वृक्ष के नीचे रोटी रखकर पानी से हाथ मुंह धोने लगा तभी वहां पर एक कुतिया अपने चार पांच छोटे छोटे बच्चों के साथ पहुंच गई और सेठ के सामने प्रेम से दुम हिलाने लगी क्योंकि कुतिया को सेठ के पास के अनाज की खुशबु आ रही थी।


कुतिया को देखकर सेठ को दया आई, सेठ ने दो रोटी निकाल कुतिया को डाल दी। अब कुतिया भूखी थी और बिना समय लगाए कुतिया दोनों रोटी खा गई और फिर से सेठ की तरफ देखने लगी,  सेठ ने सोचा कि कुतिया के चार पांच बच्चे इसका दूध भी पीते हैं दो रोटी से इसकी भूख नहीं मिट सकती और फिर सेठ ने बची हुई दोनों रोटी भी कुतिया को डाल कर पानी पीकर अपने रास्ते चल दिया।


सेठ राजा के दरबार में हाजिर हो गया और अपने किए गए पुण्य के कामों की गिनती करने लगा और सेठ ने अपने द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्म विस्तार पूर्वक राजा को बता दिए और अपने द्वारा किए गए पुण्य का फल देने की बात कही।


तब राजा ने कहा कि आपके इन पुण्य का कोई फल नहीं है, यदि आपने कोई और पुण्य किया है तो वह भी बताएं शायद उसका कोई फल मैं आपको दे पाऊँ।


सेठ कुछ नहीं बोला और यह कहकर वापिस चल दिया कि यदि मेरे इतने पुण्य का कोई फल नहीं है तो और पुण्य गिनती करना बेकार है, अब मुझे यहां से चलना चाहिए।


जब सेठ वापिस जाने लगा तो राजा ने सेठ को आवाज लगाई कि सेठ जी आपने एक पुण्य कल भी किया था, वह तो आपने बताया ही नहीं, सेठ ने सोचा कि कल तो मैनें कोई पुण्य किया ही नहीं। राजा किस पुण्य की बात कर रहा है क्योंकि सेठ भुल चुका था कि कल उसने कोई पुण्य किया था। सेठ ने कहा कि राजा जी, कल मैनें कोई पुण्य नहीं किया। तो राजा ने सेठ को कहा-  कि कल तुमने एक कुतिया को चार रोटी खिलाई और तुम उस पुण्य कर्म को भूल गए, कल किए गए तेरे पुण्य के बदले तुम जो भी मांगना चाहते हो मांग लो वह तुझे मिल जाएगा।


सेठ ने पूछा- कि राजा जी ऐसा क्यों? मेरे किए पिछले सभी कर्म का कोई मूल्य नहीं है और एक कुतिया को डाली गई चार रोटी का इनका मोल क्यों?


राजा ने कहा- हे से

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